शिकार प्रकरणों में गुना वन मण्डल की घोर लापरवाही
समीक्षा बैठक के नाम पर महज दिखावा
शिवपुरी /गुना वनमण्डल के कारनामे किसी अजूबे से कम नही है। जंगल और वन्य प्राणी की सुरक्षा जिन पर हे वही इसको कमाई का जरिया बना रहे हैं। हजारों हेक्टयर ऑन रिकॉर्ड अतिक्रमण वन विभाग में दर्ज हे । वन्य प्राणी के संरक्षण और उन पर सतत निगरानी की जिम्मेदारी भी वन विभाग को हे।जिसके लिए वन विभाग को लाखो रुपए का फंड भी आता है।वही फंड कमीशन की भेंट चढ़ जाता है,ओर कमीशन के रूप में उस फंड की भेंट नीचे से ऊपर तक चढ़ जाती है। जिसका उदाहरण हाल ही में गुना दक्षिण वन मण्डल के सतनपूर शिकार कांड में खुल गई । सतनपुर शिकार में एक निर्दोष व्यक्ति की जान भी जा चुकी है। शिकारियों ने जंगली जानवरों के शिकार के लिए खेत में करेंट के तार बिछाए थे । जिसमे कृष्ण मादा हिरण का शिकार मौके पर बरामद हुआ था । वही शिकारियों ने मृत व्यक्ति की लाश को भी तालाब में ठिकाने लगा दिया था । पर वन विभाग ने इस मामले में तत्परता नही दिखाई , ओर मामला अज्ञात पर आधारित दर्ज कर इति श्री कर ली । जबकि शिकार में मृत काला मादा हिरण होने से शेड्यूल एक के अंतर्गत होने से वाइल्ड लाइफ से जुड़ा था । जिसमे वन विभाग को खेत से करेंट के तार जप्त कर मौका मुयाना करते हुए खेत मालिक पर प्रकरण दर्ज करना था । पर वन विभाग को तो जैसे नियम कायदे से वास्ता ही नही ।जो भी करना है मन माफिक कर लेते हैं।
कालातीत में तब्दील हुए काला हिरण , नील गाय, व गोयरी कांड।
मधुसूदनगढ वन परिक्षेत्र में वर्ष 2019 में 23_24 जून की रात्रि में एक सफेद रंग के चार पहिया वाहन से कृष्ण मृग और नील गाय के शव बरामद हुए थे। कार की डिग्गी में कृष्ण मृग और नील गाय के सर और धड़ अलग अलग पाए गए थे । मौके से रात का फायदा उठाकर शिकारी भागने में कामयाब बताए जाते हैं। वही कार जप्त होने के बाद भी आज तक शिकारी वन विभाग की पकड़ से दूर है। जबकि कार के माध्यम से आसानी से शिकारियों तक पहुंचा जा सकता था। वही सूत्र बताते हैं शिकारियों का पता लगाया जा चुका था भोपाल के पास के शिकारियों ने शिकार किया था साथ ही कुछ स्थानीय लोगो की भूमिका भी इस मामले में थी । वही सूत्रों का दावा है कृष्ण मृग और नील गाय शिकार मामले में लेन देन किया गया है। ओर यही कारण है मामला आज भी फाइलों में दफ्न है। वही दूसरा कालातीत का मामला फतेहगढ़ वन परिक्षेत्र का हे । यह वर्ष 2018_19 में शिकारियों के कब्जे से दर्जनों गोयली जिंदा अवस्था में बरामद की गई थी । शिकारियों की संख्या 5 थी । बताया जाता है गोयली की तस्करी बड़े पैमाने पर की जाती है। शिकारियों से पूछताछ में खुलासा भी हुआ था एक गोयली की कीमत लगभग 15 से 20 हजार रुपए थी । वही इसकी इंटरनेशनल कीमत लाखों पर पहुंच जाती है। पर इस मामले में भी तत्कालीन फतेहगढ़ वन परिक्षेत्र अधिकारी दशरथ अखंड व वन आरक्षक ओमप्रकाश ने शिकारियों से सांठ गांठ कर मामले को दबा दिया । सूत्रों के अनुसार गोयली कांड में रेंजर दशरथ अखंड व वन आरक्षक ओमप्रकाश ने 350000 तीन लाख पचास हजार की राशि लेकर मामले को रफा दफा कर दिया था । पर गलती से उस समय के फोटो और मामला प्रकरण छूट गए थे । वही मामले से जुड़ी फाइल को आगे नही बढ़ाया जबकि नियमानुसार शिकारियों को कोर्ट में पेश करना था , जो नही किया गया । फतेहगढ़ गोयली कांड व अन्य शिकायतों के आधार पर तत्कालीन डीएफओ गुना उप वनमण्डल अधिकारी मयंक चांदीवाल द्वारा रेंजर दशरथ अखंड पर विभागीय जांच का पत्र वरिष्ठ अधिकारियों को दिया गया था । अब इन सब मामलो को देखते हुए वन मण्डल गुना के अधिकारियों पर समीक्षा को लेकर सवाल खड़ा होता हे । एक बाद एक वन मण्डल अधिकारी आए पर शिकार से जुड़े प्रकरणों पर संज्ञान क्यों नही लिया ? साथ ही विभागीय जांच पत्र का क्या हुआ ? पहेली बनकर रह गए हैं।